लुप्त होईत "मिथिला" : कविता

                 

    लुप्त होईत "मिथिला"  

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    शामा, कौनी,मरुआ, मौनी

     ढकना,सरबा भेलै विलुप्त।

  अल्हुआ अभागल घर सऽभागल

  चिक्कस,चाउर सब भेलै लुप्त।।


    बाबाक पैंना,दायक बैना

     कोठी-भरली गेलै फुईट ।

  सिक्का,सिक्की,चंगेरा-चंगेरी

  उख्खड़ि,समाठ सब गेलै टुईट।।


   घैला,तौला,दहीक मटकुरी

   शनै: शनै: सब भेलै गायब।

   ढ़ेका-ढ़ेकी,ढ़किया,पथिया

    ई सगरो नहिं कतौ पायब।।


  पौती,पेटारी ,बाबाक बखारी

  महफा,कहार के भेलै विदाई ।

      टारा,टारी,डाली-हारी

चित्ति सुपाड़ी ने आब कियो खाई।


  बड़दक आंती,जाड़क गांती

   केथरी,चेथरी गेल पड़ाई ।

 नवकी कनिया देहक अंगिया

  शाम-चकेवा गेल हेराई ।।


खापड़ि-खुड़पी,सिड़की-सुड़की

 जट-जटिन आब भेलै विरान।

 अरुआ,फरुआ,तरुआ,भरुआ

 आब ने कतौ तिलकोरक मान।।


    तौनी,दौनी,पौनी,पसारी

  मेह,खुंटा ने कतौ कड़ाम।

 कनिया-पुतरा,चटिया-खटिया

  आब ने कतौ भेटय खड़ाम।।


   बौआ-बुच्ची,लुच्चा-लुच्ची

   खुरलुच्ची के भेल अभाव।

 नांगट,भांगठ,सांकट ने कियो

 सगरो छोड़ल अपन स्वभाव।।


बुड़बक, काबिल,माझिल,साझिल

   आब ने कतौ भेटय अमोट।

 बिन आमिल तरकारी छमकै

 'बड़ी' दिन-दिन भेलय छोट।।


  ककरो घर ने जांत भेटय छै

 लोड़ही-सिलौट भेलै सुकुमार।

 चटगर-चटनी सौउस बनल छै

  सर-समाज में पड़ल दड़ार।।


   गोनैर-डोरी,पेन्टक छोंड़ी

 सिपटीपीन आब गेलय चुईक।

   डिबिया-बाती,पिटै छाती

  मटियो तेल आब गेलय हुईक।।


   हर-पालो आ लागनि टुटल

  संगहि छिटकल जोति-कनैल।

 बान्हल बड़द बौउख गेलय आब

 साउर-चड़क वा होई वो कैयल।।


    कुसियारक ने रस चुबै छै

    दुद्धी भेटय ने कोनो ठाम।

  लबका-लबका आईटम भेटय

    जहड़क पुड़िया गामे-गाम।।


  बथुआ-बिड़िया बातें सोन्हगर

   कुम्हरौरी के भेलय तालाक।

     चड़-चड़ौरी,बड़, अदौरी

   सबटा मनोरथ भेलय खाक।।


  ठांऊ-पिड़ही,पाहुन-पड़क आ

    बाट-बटोही भेलय गौण।

     शेर-पशेरी,कनमा, शोरे

     लबादुआ ने जोखै मोन।।


 ओरिका,तामा,दाईब दैईब गेल

   रह्हि रहि गेल ठारहि-ठाड़।

    नेना-भुटका भेलय अगत्ती

 डाबा,कोहा के फोड़ल कपाड़।।


  ओरियानी,ओसारा हटलै

  खाम्ह,बड़ेड़ी करय किलोल।

   कोरो-बाती,बन्हन बाजल

   घर-दुआरि में छै बड्ड झोल।।


  गोड़ा-गोड़हा,लोड़हा-ओड़हा

  सागक-भक्खा खाईथ आईर।

 सजबी-दहीक खौर पौड़ल अछि

   कलहा के सब परहैन गाईड़।।


  बोगली,बटुआ,बिष्टी,धरिया

    डोरर,लंगोटी,नांगट भेल।

   डराडोईर ने डांर धरै आब

 अपनेहि में सब झंझट कयल।।


   हेहर-थेथर,आगर-बागर

  छागर के फाटल छछनार।

 पाठा-पाठीक पीठ सैट गेल

नार-पुआर आब भेल बीमाड़।।


 चुल्ही,जाड़ैन,लाड़ैन लड़ि गेल

    मुरही संग भागल कंसार।

 बीचहि बांट में लाई भेट गेल

  जा बैसल सब हाट-बाजार।।


   परतानक ने तान सुनै छी

  सुनी पराती नहिं भोरे-भोर।

 दाई-माई नहिं सांझ गबै छथि

  सगरो 'मिथिला' ढ़ारथि नोर।।


    

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